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31 व एक नवंबर को घोषित हुआ सार्वजनिक अवकाश

लखनऊ। यूपी में एक नवंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया गया है। दिवाली 31 अक्तूबर को है। पहले इस दिन सरकारी कार्यालय खुले हुए थे। आज सरकार ने इसकी घोषणा की है। प्रदेश में एक तरफ जहां बेसिक विद्यालयों में 30 अक्तूबर से तीन नवंबर तक नरक चर्तुदशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज आदि की छुट्टियां हैं। वहीं माध्यमिक विद्यालयों में 30-31 अक्तूबर को ही छुट्टी है। एक नवंबर शुक्रवार को विद्यालय खुलेंगे और दो को फिर गोवर्धन पूजा की छुट्टी है। इसे लेकर शिक्षकों में नाराजगी है तो छात्र और अभिभावक भी परेशान हैं। दरअसल, 30 अक्तूबर से तीन नवंबर तक लगातार त्योहार पड़ रहे हैं। इसकी वजह से न सिर्फ बेसिक बल्कि कई विश्वविद्यालयों ने भी 30 अक्तूबर से तीन नवंबर तक छुट्टी घोषित कर रखी है। किंतु एक नवंबर को माध्यमिक विद्यालय खुले हैं। हालांकि इस दिन कार्तिक अमावस्या पड़ रही है। शिक्षकों व अभिभावकों को कहना है कि बीच में एक दिन स्कूल खुलने से बाहर जाने वाले लोग दीपावली पर भी अपने घर नहीं जा पाएंगे। दीपावली 31 अक्तूबर को मनाएं या 1 नवंबर को, इसको लेकर चल रहे भ्रम को प्रमुख ज्योतिषाचार्यों ने दूर किया है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक 31 अक्तूबर को दीपावली मनाना उत्तम होगा। 31 को सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद लक्ष्मी और गणेश पूजा का मुहूर्त शुरू होगा। विशेष मुहूर्त शाम 6:48 से 8:18 बजे के बीच। सूर्यास्त के बाद पूरी रात पूजन के लिए अच्छा समय रहेगा। दीपावली के मुहूर्त को लेकर फैले भ्रम को दूर करने के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के आचार्यों की मौजूदगी में विभिन्न राज्यों और नेपाल के प्रमुख ज्योतिषाचार्यों की मंगलवार को आॅनलाइन बैठक हुई। करीब ढाई घंटे तक यह बैठक चली। लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने बताया कि धर्मशास्त्र निर्णय सिंधु में रजनी शब्द का इस्तेमाल हुआ है। इस शब्द के अर्थ को लेकर भ्रम के चलते कुछ विद्वानों ने एक नवंबर को दीपावली का निर्धारण किया है, जो गलत है। प्रो. झा के मुताबिक रात के आदि और अंत के डेढ़-डेढ़ घंटे को छोड़कर रजनी काल होता है। यानी बीच के नौ घंटे का समय ही रजनी काल कहलाता है। इसलिए दीपावली 31 अक्तूबर को मनाना उत्तम रहेगा। आॅनलाइन बैठक में दरभंगा से प्रो. शिवाकांत झा, लखनऊ से प्रो. मदनमोहन पाठक, तिरुपति से प्रो. श्रीपाद भट्ट, नागपुर से प्रो. कृष्णकांत पांडेय, कर्नाटक से प्रो. हंसधर झा आदि शामिल रहे।

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